कोई नहीं ....motivation story about confidence part 2 

MOTIVATION BANK
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रोहिणी ने थाल में खाना लगाकर जीवन्त के कमरे में रख दिया। वापस उन्होंने बिस्तर ठीक किया और लेट गईं। ज्योति बाबू से आँख मिलाने का साहस नहीं हो रहा था रोहिणी का।

"बल्ब बुझा दो रोहिणी।"

"क्या अँधेरे में ही बैठे रहोगे ?"

"

"

ज्योति बाबू भी आकर बिस्तर पर लेट गए।

अचानक रोहिणी और ज्योति बाबू ने एक दूसरे को आलिंगन में ले लिया और फफक-फफक कर रो पड़े ......... फिर देर तक रोते रहे।

टमाटर के पौधे धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। उनकी एक-एक दिन की बढ़त का हिसाब था, ज्योतिबाबू के पास। किस पौधे में कितनी टहनियाँ हैं, पिछले दिन किस टहनी में नये पत्ते आए, कौन पौधा कितना लम्बा निकल रहा है। सब कुछ उन्हें याद रहता था। पौधों के बीच जाकर ज्योतिबाबू का मन प्रसन्न हो उठता था।


 आखिर जीवन तो पौधों में भी है। उनके पास भी जबान होती तो वे भी अपना सुख- दुख, अपनी भूख-प्यास बताते। जबान नहीं है तो सारी जरूरतों का अनुमान आदमी को ही लगाना पड़ता है।

उस दिन भी ज्योति बाबू टमाटर के पौधों में पानी लगाने के बाद अखबार पढ़ने बैठ गये थे। लेकिन यह क्या। अखबार पढ़ते-पढ़ते उन्हें गश आ गया। वे सोफे पर एक ओर को गिर गए। रोहिणी ने उनकी यह हालत देखी तो वे परेशान हो उठी। मन तरह-तरह की आशंकाओं से भर उठा। लेकिन रोहिणी ने जैसे ही पानी के चार-छ: छींटे ज्योति बाबू के मुँह पर मारे, उनकी मूर्च्छा टूट गई।

"क्या हो गया था आपको?"


खबर पढ़कर रोहिणी सकते में आ गई। ऐसा निकलेगा जीवन्त इसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की थी। किसी को मुँह दिखाने की स्थिति में नहीं बची थी।

शाम के पाँच बजते-बजते सचमुच दिल्ली पुलिस का दस्ता आ धमका ज्योति बाबू के घर पर। पुलिस की खबर लगते ही पूरा मुहल्ला जमा हो गया था


 वहाँ। इससे पहले कि पुलिस वाले किसी बदतमीजी पर उतरते, मुहल्ले के कई नामचीन लोग ज्योति बाबू के पक्ष में दृढ़ता से सामने आ गए।

 बड़े धैर्य के साथ ज्योति बाबू ने पुलिस-दल से घर के चप्पे-चप्पे की जाँच करवाई। लेकिन पुलिस को न तो जीवंत मिला और न लूटपाट का कोई कैश। अलबत्ता इस कार्यवाही में पुलिस-दल ने दो कमरों के ज्योतिबाबू के छोटे से फ्लैट को कबाड़खाना बनाकर रख दिया। ले

इससे कहीं-कहीं ज्यादा टीस हो रही थी ज्योति बाबू को अपनी इज्जत का कबाड़ा हो जाने से। अपनी ही आँखों में वे चोर और अपराधी अनुभव करने लगे थे। देर रात तक वे और रोहिणी घर का एक-एक सामान सहेजते रहे और सोचते रहे काश! जिन्दगी के क्षण भी इसी तरह से फिर से सहेजे जा सकते।

ज्योतिबाबू के अन्दर का अँधेरा और घना हो आया था। उनके दिमाग में पुलिस की यह हिदायत हथौड़े की तरह बार-बार चोट कर रही थी-अगर जीवन्त को मृतक होने से बचाना है तो उससे कहिए तुरन्त सरेण्डर कर दे।`

हफ्ते भर के अन्दर ही अखबारों में खबर आई कि जीवन्त ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया है। ज्योति बाबू आगे की किसी पुलिसिया जलालत से तो बच गए थे। लेकिन उन्होंने जीवंत की जमानत कराने से साफ इन्कार कर दिया।

रोहिणी का मन नहीं मान रहा था। उन्होंने तरह-तरह से ज्योति बाबू को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे नहीं पसीजे।

आखिर जीवन्त के ही किसी 'गॉड-फादर` ने उसकी जमानत भी करवा ली।

 जीवन्त अब लगातार ही बाहर रहने लगा था। यदाकदा उसके फोन आ जाते, "माँ मैं ठीक हूँ। आप कैसी हैं ? डैड कैसे हैं ?"

रोहिणी का मन बेटे से मिलने के लिए चीत्कार करके रह जाता। लेकिन जीवंत अपनी दुनिया में ही खोया हुआ था।

कुछ समय और बीता। एक दिन ज्योति बाबू ने देखा कि टमाटर की टहनी पर छोटा सा पीला फूल उभर आया है। धीरे-धीरे और भी कई टहनियों पर पीले फूल दिखाई देने लगे। कुछ दिनो के अंतराल पर ही उन फूलों के बीच सरसों जैसे छोटे-छोटे दाने बन गये। हफ्ते भर के अंदर ही इन दानों की शक्ल टमाटर जैसी लगने लगी। अब पौधों के पास बैठने से खट्टी-खट्टी सी खुश्बू आने लगी।

ज्योति बाबू टमाटर की इस उभरती फसल को देखकर निहाल होते जा रहे थे। सुबह का यही थोड़ा-सा समय, जब वे अपनी क्यारी में होते थे,

 उ नके

लिए प्रसन्नता का समय होता था। अन्यथा शेष समय जीवंत उनके दिल-दिमाग को मथता रहता था। 

शुरुआत में, कालेज के दिनों में कितना पैसा खर्च कर दिया था जीवन्त पर उन्होंने। रोहिणी तो बाद तक भी उसे खूब पैसे देती रही थी- उनसे नजरें बचा कर। उन्हें पता तो सब चल जाता था, लेकिन वे टाल जाते थे। आखिर रोहिणी कोई नादान तो थी नहीं।


मार्च के महीने में ज्योति बाबू की क्यारी में इतने टमाटर आ गये कि उन्हें लगने लगा कि अब बाजार से टमाटर नहीं खरीदने होंगे। अब इंतजार था तो सिर्फ टमाटरों के पकने का।


अब तक टमाटर के पौधे जमीन पर काफी क्षेत्रफल में सघनता से फैल गये थे। उनके बीच में फँसे मिर्च के दो पौधे काफी कृशकाय रह गये थे।  


ज्योतिबाबू बड़ी सावधानी से टहनियाँ उठा-उठा कर निरीक्षण करते और अनुमान लगाते कि कौन टमाटर कब तक पक जायेगा।

लेकिन एक दिन सुबह-सुबह जब वे क्यारी की तरफ गये तो ये देख कर हतप्रभ रह गये कि कई सारे कच्चे टमाटर अधखाये, इधर-उधर बिखरे पड़े हैं।

 कई टहनियाँ भी टूटी-बिखरी पड़ी थीं। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने क्यारी में घूम-घूम कर खूब चहलकदमी की हो।

आगे की कहानी पार्ट 3 में 

तब तक अपना ख्याल रखना

जय हिन्द जय भारत

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