कोई नहीं..पार्ट 3...motivation story in hindi
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आपने अपनी तक पार्ट 2 और पार्ट 1 नहीं पढ़ा है तो पहले उनको read कीजिए
ज्योति बाबू ने रोहिणी को बुला कर टमाटर के पौधों की दुर्दशा दिखाई तो वे भी दुखी हो उठीं। लेकिन आस-पास पड़े मल से उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि शरारत बंदरों की है।
ज्योति बाबू खीझ कर रह गये। उनका मन कचोट कर रह गया। उन्होंने पौधों में झाँक-झाँक कर देखा तो ऐसे कई टमाटर गायब थे, जिनके जल्दी पकने की उम्मीद थी।
आखिर वह दिन भी आया, जब ज्योति बाबू की क्यारी ने उन्हें पहला पका टमाटर दे ही दिया।
ज्योति बाबू ने उस टमाटर को खूब अच्छा-सा धोया और प्लेट में सजा कर पूजा घर में भगवान के पास रख आये। रोहिणी ने इस दृश्य को देखा तो वे भावुक हो उठीं।
इधर जीवन्त की गतिविधियाँ लगातार समाचार-पत्रों की सुर्खियों का हिस्सा बन चुकीं थी। लूट, बलात्कार से लेकर हत्या तक के कई मामलों में उसका नाम आ चुका था।
घर तो वह महीनों से नहीं आया था, हाँ पुलिस जरूर बीच-बीच में आती रहती थी।
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पुलिस की इस आवाजाही में धीरे-धीरे मुहल्ले वाले भी ज्योति बाबू से मुँह चुराने लगे। ज्योति बाबू और रोहिणी अपने आप तक ही सीमित होते जा रहे थे। उन्होंने अपने मन को, हर हाल में जीने के लिए समझा लिया था।
ज्योति बाबू का टमाटर के पौधों को पानी देने का क्रम भी साथ-साथ चलता रहा।
क्यारी से कोई पन्द्रह दिन तक तो फल आते रहे। उसके बाद अचानक पौधों पर फूल आना ही बन्द हो गए। फूल नहीं तो फिर फल कहाँ से आएँगे।
धीरे-धीरे टमाटर के सारे पौधे बाँझ हो गए। ज्योति बाबू परेशान हो उठे। इतनी सारी मेहनत, इतनी देखभाल सबका क्या यही नतीजा निकलने वाला था।
क्या जीवन्त की तरह ही इन पौधों के साथ की गई मेहनत भी अकारथ चली जायगी? ऐसी ही बातें सोच-सोच कर ज्योति बाबू लगातार दु:खी होते जा रहे थे।
फिर भी ज्योति बाबू इस उम्मीद में पौधों को पानी दिये जा रहे थे कि शायद उन पर फिर से फल आएँ। लेकिन उनकी इस आशा का कोई नतीजा निकलता नहीं लग रहा था।
टमाटर के पौधे लगातर स्वस्थ होते जा रहे थे। लेकिन उनकी पत्तियाँ कुछ टेढ़ी-मेढ़ी होने लगी थीं। जैसे उनमें कोई रोग लग गया हो।
आशंकाग्रस्त ज्योति बाबू एक माली को बुला लाए। क्यारी देखते ही माली बोला -
"बाबू जी ! अब तो आप इस क्यारी से सब्जी की उम्मीद छोड़ ही दीजिए। लगता है आपने पौधों को पानी से खूब सींचा है। टमाटर को इतने पानी की जरूरत थोड़ी होती है बाबू जी? अब तो इन्हें उखाड़ कर फेंक ही दीजिए।"
ज्योति बाबू अपनी अनुभवहीनता को समझ गए। लेकिन उनका मन क्यारी को उजाड़ने का नहीं हो रहा था। जिस क्यारी को इतनी मेहनत से लगाया, पाला-पोसा, उसे ऐसे ही अपने हाथों से कैसे उजाड़ दें ?
कई दिन तक ज्योति बाबू की कश-म-कश चलती रही तभी एक दिन टेलीविजन में सी.बी.आई. की तरफ से जीवन्त की तस्वीर देखकर वे परेशान हो उठे। सी.बी.आई. ने जीवन्त को पकड़ने के लिए पचास हजार का इनाम घोषित कर दिया था।
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अगले दिन सुबह उठते ही ज्योति बाबू ने टमाटर के सारे पौधों को उखाड़ कर फेंक दिया। रोहिणी ने देखा तो ज्योति बाबू के चेहरे से मुँह की सारी लकीरें गायब थीं ,जो टमाटर की एक-एक टहनी या फल टूटने पर उभर आती थीं।
दस बजते-बजते ज्योति बाबू स्थानीय अखबार के दफ्तर में थे। विज्ञापन-मैनेजर अभी आ नहीं पाया था। ज्योति बाबू गलियारे में बेंच पर बैठे ऊभ-चूभ करते रहे।
विज्ञापन मैनेजर के आते ही ज्योति बाबू भी उसके पीछे-पीछे अन्दर पहुँच गए।
"कैसा विज्ञापन है यह?....... क्या मैटर है?"
ज्योति बाबू ने कुर्ते की जेब से एक लिफाफा काँपते हाथों से निकाला और मैनेजर की ओर बढ़ा दिया।
लिफाफे में एक छोटी-सी तहरीर के साथ एक फोटो थी। तहरीर में लिखा था-
उसके किसी भी कृत्य के लिए हम दोनों जिम्मेदार नहीं होंगे।"
" कौन है जीवन्त आपका?"-
विज्ञापन मैनेजर ने तहरीर के नीचे ज्योति बाबू का नाम लिखकर उनसे हस्ताक्षर करवाये और बगल के काउण्टर पर कैश जमा कराने का इशारा कर दिया।
ज्योति बाबू एक झटके से उठ खड़े हुए। विज्ञापन मैनेजर उन्हें बाहर जाता हुआ परेशान-सा देखता रहा और फिर बिसूरता -सा अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
ज्योति बाबू अखबार के दफ्तर से बाहर निकले तो उनके कदमों में नई तरह की दृढ़ता थी। उन्होंने एक रिक्शा लिया और सड़क पर चल रही ट्रैफिक का हिस्सा बन गए।
ज्याति बाबू घर पहुँचे तो न चाहते हुए भी वे क्यारी की तरफ चले ही गए। क्यारी के कोने में गड्ढे की तरफ टमाटर के उखड़े पौधे मुरझा रहे थे।
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तभी उनकी निगाह मिर्च के दोनों कृशकाय पौधों की ओर चली गई।
पौधों के आस-पास की जमीन काफी खुश्क हो रही थी। उन्होंने लॉबी में पड़े लीड पाइप को नल की टोंटी में फिट करके पानी खोल दिया तथा मिर्च के पौधों को सिर से जड़ तक पानी से सराबोर करने लगे।
अचानक ही ज्योति बाबू को लगा कि मिर्च के दोनों पौधे दो नन्हें-मुन्ने बच्चों में तब्दील हो गए हैं ,जिन्हें वे किसी अनाथालय से उठा लाए हैं।
वे देर तक उन दोनो बच्चों को पानी से भिगोते-नहलाते रहे।
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